International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(6):224-229
21वीं सदी की हिंदी कविता में प्रतिरोध का स्वर
Author Name: डॉ. हंबीरराव मारुती चैगले;
Paper Type: review paper
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Abstract:
यह शोधपत्र 21वीं सदी की समकालीन हिन्दी कविता में प्रतिरोध के स्वर और सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था के प्रति कवियों के उत्तर-आरोपों का विश्लेषण करता है। लेख में दिखाया गया है कि कैसे समकालीन कवि पारंपरिक सौंदर्य-आयोगों को चुनौती देते हुए वर्ग, जाति, लिंग और राज्य-सत्ता से जुड़े अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं; उस आवाज़ का निर्माण भाषाई प्रयोग, रूपात्मक नवाचार और स्थानीय/जनजीवन के प्रत्यक्ष अनुभवों के माध्यम से होता है। अध्ययन में नगर और ग्राम, इतिहास और आजीवन संघर्षों के संदर्भ में कविता के बहुमुखी आयामों — प्रतिवाद, विस्थापन, पहचान-संघर्ष, तथा सामाजिक चेतना — पर ध्यान दिया गया है। लेख यह भी दर्शाता है कि समकालीन कविता न केवल व्यक्तिगत भावनाओं का प्रदर्शन है, बल्कि सामूहिक स्मृति और प्रतिरोधी राजनीति का साहित्यिक रूपांतरण भी है। निष्कर्ष में कहा गया है कि समकालीन हिन्दी कविता सामाजिक बदलाव की एक सक्रिय सांस्कृतिक शक्ति बनकर उभर रही है, जो नए पाठक-अनुभव और भाषिक संभावनाएँ खोलती है।
Keywords:
21वीं सदी की हिंदी कविताएँ; समकालीन कविता; प्रतिरोध का स्वर; समकालीन कविता में प्रतिरोध; सामाजिक व्यवस्था; सामाजिक चेतना; नई अभिव्यक्ति; सामाजिक यथार्थ; परिवर्तन की आवाज़
How to Cite this Article:
डॉ. हंबीरराव मारुती चैगले. 21वीं सदी की हिंदी कविता में प्रतिरोध का स्वर. International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary. 2025: 4(6):224-229
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