IJ
IJCRM
International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary
ISSN: 2583-7397
Open Access • Peer Reviewed
Impact Factor: 5.67

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(3):582-589

डॉ० शंकर शेष के नाटकों में चित्रित पात्रों दलित और स्त्री का सामाजिक आधार

Author Name: धनंजय कुमार महतो;   डॉ० मीरा कुमारी;  

1. शोधार्थी, राँची विश्वविद्यालय, राँची, झारखण्ड, भारत

2. शोध निदर्शक, राँची विश्वविद्यालय, राँची, झारखण्ड, भारत

Paper Type: research paper
Article Information
Paper Received on: 2025-05-01
Paper Accepted on: 2025-06-15
Paper Published on: 2025-06-30
Abstract:

हिंदी नाट्य साहित्य में डॉ. शंकर शेष एक ऐसे सशक्त नाटककार हैं जिन्होंने नाटक को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर उसे सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का दर्पण बनाया। उनके नाटकों में समाज के विभिन्न वर्गों—निम्नवर्ग, मध्यमवर्ग, उच्चवर्ग, दलित एवं स्त्रियाँ—की जीवन-स्थितियों और संघर्षों का यथार्थ चित्रण मिलता है। विशेषतः बाढ़ का पानी, पोस्टर, रक्तबीज और एक और

हिंदी नाट्य साहित्य में डॉ. शंकर शेष एक ऐसे सशक्त नाटककार हैं जिन्होंने नाटक को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर उसे सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का दर्पण बनाया। उनके नाटकों में समाज के विभिन्न वर्गों—निम्नवर्ग, मध्यमवर्ग, उच्चवर्ग, दलित एवं स्त्रियाँ—की जीवन-स्थितियों और संघर्षों का यथार्थ चित्रण मिलता है। विशेषतः बाढ़ का पानी, पोस्टर, रक्तबीज और एक और द्रोणाचार्य जैसे नाटकों में जातिगत भेदभाव, शोषण, असमानता, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और स्त्री-दमन जैसी समस्याएँ पात्रों के माध्यम से उद्घाटित होती हैं।

डॉ. शेष के दलित पात्र केवल पीड़ित या करुणा के पात्र न होकर प्रतिरोध और परिवर्तन के वाहक हैं। वे मंदिर प्रवेश, शिक्षा और सामाजिक पहचान के प्रश्नों को उठाकर दलित विमर्श को नया आयाम प्रदान करते हैं। वहीं स्त्री पात्र समाज की विसंगतियों, पारिवारिक दमन और अस्तित्व-संघर्ष को सामने लाते हैं, लेकिन साथ ही आत्मबल और संघर्ष-चेतना से युक्त होकर परिवर्तन की संभावना भी रचते हैं।

उनकी नाट्य दृष्टि यथार्थवादी होते हुए भी परिवर्तनकारी है। संवादों और पात्रों के संघर्षों के माध्यम से वे यह स्पष्ट करते हैं कि साहित्य और समाज अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। रत्नगर्भा जैसे नाटकों में प्रतीकात्मक ढंग से वर्ग-संघर्ष, सत्ता-लोलुपता और स्त्री-अस्मिता के प्रश्नों को उठाया गया है।

अतः डॉ. शंकर शेष का नाट्य साहित्य सामाजिक विषमताओं और वर्गीय अंतर्विरोधों का सशक्त दस्तावेज़ है। उनके नाटक दलित और स्त्री विमर्श के माध्यम से न केवल समाज की जटिलताओं को उजागर करते हैं, बल्कि समानता, संघर्ष, सहयोग और मानवीय संवेदना के आधार पर एक नए समाज की संभावना की ओर संकेत भी करते हैं।

Keywords:

डॉ. शंकर शेष, हिंदी नाटक, दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, सामाजिक यथार्थ, वर्ग-संघर्ष, अस्मिता, परिवर्तन, यथार्थवाद, नाट्य साहित्य

How to Cite this Article:

धनंजय कुमार महतो,डॉ० मीरा कुमारी. डॉ० शंकर शेष के नाटकों में चित्रित पात्रों दलित और स्त्री का सामाजिक आधार. International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary. 2025: 4(3):582-589


Download PDF