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International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary
ISSN: 2583-7397
Open Access • Peer Reviewed
Impact Factor: 5.67

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(1):13-17

डाँ. अम्बेडकर के सामाजिक समानता पर विचार

Author Name: ओम प्रकाश जयपाल;   डा. मनु सिंह;  

1. शोधार्थी, राजनीति विभाग, मौलाना आजाद विश्व विद्यालय, जोधपुर, राजस्थान, भारत

2. शोध निर्देशक, राजनीति विभाग, मौलाना आजाद विश्व विद्यालय, जोधपुर, राजस्थान, भारत

Abstract

सामाजिक न्याय पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार भारतीय संविधान का आधार हैं अर्थात् सामाजिक न्याय भारतीय संविधान की भावना और दृष्टि है। सामाजिक न्याय से अभिप्राय है सभी नागरिकों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान सामाजिक अवसर प्रदान करना, जो समानता और सामाजिक अधिकारों से जुड़ा है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करे जिसमें राष्ट्र की कानूनी व्यवस्था समान अवसर उपलब्ध के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे तथा साथ ही विशेष रूप से यह भी सुनिश्चित करे कि आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण प्रत्येक नागरिक को न्याय के अवसरों की अनुउपलब्धता न हो। प्रत्येक राज्य में न्याय के आधार पर सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करना और सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण हो जाता है। समाज में अधिकांश लोगों के साथ जाति, धर्म, नस्ल लिंग, रंग, आदि के आधार पर विभेद करते हुए भेदभाव के जरिए शोषण किया जाता हैं, क्योंकि वे ज्यादातर अशिक्षित और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों से हैं जो उनके बीच सामाजिक अव्यवस्था और असमानता पैदा करता है। इसलिए, सामाजिक न्याय की आवश्यकता बेहद आवष्यक है। भारत जैसे विषाल विविधापूर्ण समाज में एक समतावादी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। इन्ही विचारों के साथ इस लेख में सामाजिक न्याय पर डॉ. अंबेडकर के विचारों को जानने की ओर अग्रसर है।

Keywords

सामाजिक समता, संविधान, अधिकार, लोकतंत्र, न्यायोचित, सार्वभौमिक।