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International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary
ISSN: 2583-7397
Open Access • Peer Reviewed
Impact Factor: 5.67

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(5):220-222

इक्कीसवीं सदी के उपन्यास: कथानक परिवर्तन का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Author Name: Usha Kumari;   Dr. Ankit Narwal;  

1. Research Scholar, IEC University Baddi, Himachal Pradesh, India

2. Research Supervisor, IEC University Baddi, Himachal Pradesh, India

Abstract

उपन्यास को अक्सर आधुनिक युग का महाकाव्य कहा जाता है क्योंकि यह अतीत, वर्तमान और भविष्य को साथ में लेता है। यह पूरे जीवन को एक महाकाव्य की तरह समेट सकता है। आधुनिक उपन्यासों से उम्मीद है कि वे समाज की छोटी-बड़ी सभी जटिलताओं को दिखाएँ। ये परिप्रेक्ष्य को वैश्विक बनाने की कोशिश करते हैं, ताकि सचाई का सही चित्र उभर सके। आज, लेखक हमारी दुनिया को हमारी नजरों से देख कर दिखाने का काम करते हैं। वे न केवल सोच से जुड़े होते हैं, बल्कि महसूस कर भी सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। 21वीं सदी के हिंदी लेखकों को इस महाकाव्यात्मक लक्ष्य की पूरी समझ है। उनके उपन्यास पुराने आदर्शों से बाहर निकल चुके हैं। वे अब असली दुनिया की सच्चाइयों से जुड़ते हैं, उन्हें समझते हैं और सबके साथ साझा करते हैं। वे की कहानियाँ में अब सामान्य लोग ही मुख्य हैं, न कि आदर्श कहानियां के नायक। हाल के वर्षों में, उपन्यास का ध्यान पुराने विषयों से हटकर नई जगह पर आ गया है। अब वे उन लोगों, मुद्दों और समूहों पर ध्यान देते हैं, जो पहले नजरअंदाज किए जाते थे। ये समूह या तो दिखाए नहीं जाते थे या फिर मौजूद होने के बावजूद छिपाए जाते थे। समय के साथ, ये लोग और मुद्दे सक्रिय होकर अपना स्थान बनाने लगे हैं। वे अपनी इज्ज़त और आवाज़ मजबूत कर रहे हैं। इससे कविता और सोच में बड़ा बदलाव आया है। अब मान्यताओं को बहुलवादी सोच में बदला जा रहा है। कहानियों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं और नए नजरिए सामने आ रहे हैं।

Keywords

इक्कीसवीं सदी, आधुनिक उपन्यासों, महाकाव्यात्मक परिवर्तन.