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International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2024;3(1):188-193

कामायनी का प्रतिपाद्य: जीवन दर्शन एवं मूल्य

Author Name: डॉ. विजय आनन्द मिश्र

Paper Type: review paper
Article Information
Paper Received on: 2024-01-15
Paper Accepted on: 2024-02-21
Paper Published on: 2024-02-24
Abstract:

इस शोध पत्र में, प्रसिद्ध हिंदी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी में संग्रहित दार्शनिक और नैतिक आयामों की खोज की गई हैं । कामायनी के माध्यम से प्रसाद, विद्यमान मौजूदा और नैतिक दृष्टिकोणों का अध्ययन करते हैं, जो जीवन, मानव मूल्यों, और सामाजिक नियमों की गहराई में छिपे हैं। कामायनी के विषयों, पात्रों, और प्रतीकात्मक तत्वों के विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से, यह अध्ययन कामायनी में संगृहीत दार्शनिक विचारों और नैतिक शिक्षाओं के जटिल स्तरों को उन्मुख करने का प्रयास करता है । यह अध्ययन समकालीन समाज में इसके महत्व और इसके स्थायी साहित्यिक महत्व का अध्ययन करके, कामायनी द्वारा प्रदान की गई गहरी दार्शनिक और नैतिक सीखों को समझने में मूल्यवान अंशों को प्रस्तुत करता है ।

Keywords:

कामायनी, जयशंकर प्रसाद, हिंदी कविता, प्रेम, भक्ति, समाज, धार्मिकता, संस्कृति, दर्शन, मूल्य

Introduction:

जयशंकर प्रसाद की रचना कामायनी में मानव जीवन की सच्ची झांकी दिखाई देती है । इसमें मानव मूल्य के विविध आयाम अनायास ही देखने को मिलते हैं। कामायनी काव्य प्रसाद जी की आधुनिक कृति है इसमें प्रसाद जी यद्यपि भारतीय भी हैं और उसकी प्राचीन संस्कृति प्रेमी के रूप में दिखाई देते हैं, परंतु कामायनी में उन्होंने नवीन वैज्ञानिक तथ्य कारी यथेष्ट उपयोग किया है । यही विशेषता के कार्य को आधुनिकता प्रदान करती है प्रसाद जी ने कामायनी के नायक और नायिका । मनु और कामायनी का स्वरूप वैज्ञानिकता पर स्थिर किया है । पुरुष और नारी की विज्ञान सम्मत प्रकृति और प्रवृत्ति का चित्रण कामायनी के रूप में करने की चेष्टा की है । पुरुष और नारी प्रक्रिया क्या है ?सभ्यता इतिहास और परंपरा के आवरण को अलग कर देने पर क्या रह जाते हैं ? यही कामायनी और मनु के स्वरूपों में दिखाया गया है । कामायनी में कवि विज्ञान सम्मत चित्रण द्वारा जीवन के स्वरूप और उसकी प्रेरणा की परीक्षा करना और उसके तत्वों पर प्रकाश डालना चाहता है । आज का मनुष्य और आज की तारीख का इतिहास की उसमें प्रगति और संस्कारों का मेल हो गया है । इसलिए समय ऐतिहासिक और कारगर आवरण के बाहर जाकर उसमें विद्यमान प्रवृत्तियों के उद्घाटन में प्रसाद जी संलग्न हुए हैं । नवीन विज्ञान का कहना है कि मनुष्य की वास्तविक प्रकृति का परिचय और परिज्ञान तथा प्रकृति के आधार पर उसकी जीवन विधान का निरूपण मानव के लिए आवश्यक है । प्रसाद जी कामायनी काव्य में इस तथ्य को मानकर मूल मानव प्रकृति के उद्घाटन में प्रवृत्त हुए हैं जिसमें मानव जीवन के विविध रुप अलग-अलग ढंग से इसमें उपस्थित हुए हैं।

How to Cite this Article:

डॉ. विजय आनन्द मिश्र. कामायनी का प्रतिपाद्य: जीवन दर्शन एवं मूल्य. International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary. 2024: 3(1):188-193


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