International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(1):01-05
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में योग से आत्म-परिवर्तन द्वारा सामाजिक परिवर्तन
Author Name: भावना कच्छवाहा;
Abstract
वर्तमान भौतिकवादी युग में मनुष्य अपने मूल स्वरूप को भूल गया है, जिसके परिणामस्वरूप वह अशांत और दुखी है। योग इन दुखों से मुक्ति और परम शांति व आनंद प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है। योग जीवन जीने की कला और एक साधना विज्ञान है जो जन्म-जन्मांतर के संस्कारों को क्षीण कर व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाता है। योग का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है, जिसमें चारित्रिक, शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और अंततः मोक्ष की प्राप्ति शामिल है। अष्टांग योग व्यक्ति के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, जिससे राष्ट्र और संपूर्ण विश्व का समग्र विकास संभव है। आत्म-परिवर्तन सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की कुंजी है, और योग इस स्व-परिवर्तन के लिए एक उत्कृष्ट तकनीक है। योग बुद्धि का विकास करता है, यथार्थ सत्ता की अनुभूति कराता है, और जीवन को आशावादी, प्रगतिशील और सार्थक बनाता है। यह आंतरिक दिव्य शक्तियों को जागृत कर मन, वाणी और कर्मों को संतुलित करता है, तथा व्यक्ति को अहंकार से निःस्वार्थता और अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है। मानसिक रोगों का समाधान केवल आध्यात्मिक विद्या को क्रियात्मक रूप देने से ही संभव है, और यह योग के माध्यम से ही संभव है।
Keywords
परम शांति, परमानंद, सर्वांगीण विकास, चारित्रिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, अष्टांग योग, समग्र विकास।