International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(4):319-323
प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया द्वारा परीक्षणः भारतीय संविधान और आपराधिक न्याय प्रणाली के परिप्रेक्ष्य से आलोचनात्मक अध्ययन
Author Name: Nazmin Khan; Dr. Jyoti Panchal Mistri;
Abstract
भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में प्रेस को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ कहा जाता है। प्रेस की स्वतंत्रता, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)a के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में संरक्षित है। यह स्वतंत्रता नागरिकों को न केवल अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार देती है, बल्कि यह प्रेस को जनता के समक्ष सूचना लाने और सरकार व न्याय व्यवस्था पर निगरानी रखने की भूमिका भी देती है। परंतु समय-समय पर यह देखा गया है कि प्रेस, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, न्यायालय में लंबित मामलों पर इस प्रकार से रिपोर्टिंग करता है कि वह ‘मीडिया ट्रायल’ का रूप ले लेता है।
यह शोध-पत्र मीडिया ट्रायल और प्रेस की स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने के संवैधानिक और विधिक दृष्टिकोणों का आलोचनात्मक विश्लेषण करता है। अध्ययन में यह विश्लेषण किया गया है कि किस प्रकार मीडिया ट्रायल निष्पक्ष न्याय के सिद्धांत को प्रभावित करता है, जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। साथ ही, इस शोध में न्यायपालिका के महत्वपूर्ण निर्णयों, जैसे कि सहारा इंडिया बनाम एसईबीआई, आर.के. आनंद बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय, इत्यादि का विश्लेषण कर यह समझने का प्रयास किया गया है कि न्यायपालिका ने मीडिया ट्रायल को लेकर क्या रुख अपनाया है। इस शोध का उद्देश्य यह भी है कि मीडिया की भूमिका को स्वतंत्र, परंतु जिम्मेदार बनाया जा सके ताकि न्याय प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे और अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर प्राप्त हो। शोध में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराएं, और अवमानना अधिनियम, 1971 की भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है। अंततः शोध निष्कर्षों के आधार पर यह अनुशंसा करता है कि मीडिया के लिए एक अधिक प्रभावशाली नियामक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जिससे प्रेस की स्वतंत्रता और न्याय प्रणाली दोनों की रक्षा हो सके।
Keywords
प्रेस की स्वतंत्रता, मीडिया ट्रायल, भारतीय संविधान, निष्पक्ष न्याय, न्यायपालिका, अनुच्छेद 19(1)a