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International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary
ISSN: 2583-7397
Open Access • Peer Reviewed
Impact Factor: 5.67

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2024;3(5):242-246

प्रभा खेतान के उपन्यासों में नारी का स्वरूपः एक अध्ययन

Author Name: माया देवी;  

1. शोधार्थी, हिंदी विभाग, एन. आई. आई. एल. एम यूनिवर्सिटी, कैथल, हरियाणा, भारत

Abstract

प्रभा खेतान के उपन्यासों में नारी का स्वरूप उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को उजागर करता है। उनके साहित्य में नारी केवल संघर्षशील व्यक्तित्व नहीं है, बल्कि वह अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाली एक सशक्त और जागरूक इकाई भी है। यह शोध उनके उपन्यासों के माध्यम से नारी के विभिन्न पहलुओं और उनके महत्व का विश्लेषण करता है।
प्रभा खेतान के उपन्यासों में नारी का स्वरूप उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक संघर्षों को उजागर करता है। उनके साहित्य में नारी केवल संघर्षशील नहीं, बल्कि एक सशक्त और जागरूक इकाई के रूप में प्रस्तुत होती है। खेतान ने समाज में नारी के अधिकारों, स्वतंत्रता और सशक्तिकरण को प्रमुखता दी है। उनके उपन्यासों, जैसे "छिन्नमस्ता", "अपने-अपने हिस्से", और "अन्या से अनन्या" में नारी की सामाजिक भूमिका, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक जागरूकता और मानसिक संघर्षों का गहन चित्रण किया गया है। नारी को केवल पारिवारिक भूमिकाओं तक सीमित न मानते हुए, खेतान ने उसे समाज के विकास में योगदान देने वाली सशक्त इकाई के रूप में प्रस्तुत किया है। आर्थिक स्वतंत्रता को नारी के आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता से जोड़ा गया है, जो पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देता है। राजनीतिक अधिकारों की बात करते हुए, खेतान ने यह दिखाया कि महिलाओं को समाज में समान अवसर मिलना चाहिए। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, उनके उपन्यासों में नारी की आंतरिक इच्छाओं और कर्तव्यों के बीच संघर्ष को महत्वपूर्ण रूप से दर्शाया गया है। प्रभा खेतान का साहित्य नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आज के समाज में भी प्रासंगिक है।
 

Keywords

प्रभा खेतान, नारी विमर्श, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक जागरूकता, मनोवैज्ञानिक संघर्ष, हिंदी साहित्य