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International Journal of Contemporary Research in Multidisciplinary

International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(3):355-363

भारतीय संघीय संरचना में समय के साथ हुए संवैधानिक परिवर्तन: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन (1996-2025)

Author Name: Praveen Kumar Dwivedi;   Dr. Ramsiya Charmkar;  

1. Ph.D. Research Scholar, Faculty of Humanities and Liberal Arts, Rabindra Nath Tagore University, Raisen, Bhopal, Madhya Pradesh India

2. Associate Professor, Faculty of Humanities and Liberal Arts, Rabindra Nath Tagore University, Raisen, Bhopal, Madhya Pradesh, India

Abstract

भारतीय संविधान विश्व के सबसे व्यापक और परिष्कृत संविधानों में से एक है, जो भारत की बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी समाज की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए एक विशिष्ट संघीय-संयोजन प्रणाली प्रस्तुत करता है। संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को "राज्यों का संघ" कहा गया है, जो एक ऐसी अभिन्न एकता का प्रतीक है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के बीच शक्तियों का स्पष्ट वितरण किया गया है। भारत के संघवाद की विशेषता यह है कि यह एक "ऊपर से नीचे" लागू किया गया संघवाद है, जहाँ राज्यों की सत्ता संविधान से आती है, न कि वे स्वतंत्र संप्रभु इकाइयाँ हैं।  संविधान में संघीय स्वरूप की प्रमुख पहचान शक्ति के वितरण में है, जिसे संविधान की सातवीं अनुसूची के माध्यम से तीन सूचियोंकेंद्र सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूचीके द्वारा परिभाषित किया गया है। इससे केंद्र और राज्यों के बीच विधायी अधिकारों का संतुलित बँटवारा सुनिश्चित होता है। इसके अतिरिक्त केंद्र और राज्यों के पास स्वतंत्र विधायिका और कार्यपालिका हैं, जो भारतीय संघवाद की मजबूती को दर्शाता है।  फिर भी, भारतीय संघवाद में एकात्मकताएँ भी विद्यमान हैं। केंद्र सरकार को अनेक अधिकार प्राप्त हैं, जैसे कि समवर्ती सूची के मामलों में यदि केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र का कानून सर्वोपरि होता है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो केंद्र के प्रभाव को दर्शाता है। इसके अलावा आपातकालीन प्रावधान (अनुच्छेद 352, 356, 360) के तहत केंद्र को राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार प्राप्त होता है, जो केंद्राभिमुख संघवाद की प्रकृति को उजागर करता है। वित्तीय दृष्टि से भी राज्यों की केंद्र पर निर्भरता अधिक है क्योंकि कराधान एवं अनुदान के माध्यम से केंद्र राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और एकीकृत संरचना संघीय व्यवस्था को संतुलित बनाए रखती है। अतः भारतीय संविधान में संघीय विशेषताएँ स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं, लेकिन साथ ही यह एक मजबूत केंद्र के साथ केंद्राभिमुख संघवाद का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो देश की विविधताओं के बीच राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता है।

Keywords

भारतीय संविधान, संघीय विशेषताएँ, केंद्राभिमुख संघवाद, शक्तियों का वितरण, आपातकालीन प्रावधान