International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2024;3(6):118-120
प्राचीन भारत में उत्तराधिकार का सिद्धांत, एक समाजाास्त्रीय विवेचन
Author Name: देवेन्द्र कुमार पाठक;
Abstract
प्राचीन भारतीय समाज में उत्तराधिकार एक महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ चिंतन का विषय रहा है। समाज में संपत्ति और अधिकारों के स्वामित्व से जुड़े उत्तराधिकार के नियमों का निर्धारण भारतीय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए किया गया था। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती, तो उसकी संपत्ति का अधिकार उसके निकटतम रिश्तेदारों या सन्तान को प्राप्त होता था। यदि मृतक ने वसीयत नहीं छोड़ी होती, तो उत्तराधिकारी के रूप में परिवार के सदस्य, जैसे पुत्र, पत्नी या अन्य रिश्तेदार स्वामित्व प्राप्त करते थे। राजतंत्र में भी उत्तराधिकार का सिद्धांत लागू था, जहां राजा का पद अक्सर वंशानुगत होता था। यदि राजा का ज्येष्ठ पुत्र अयोग्य होता, तो छोटे भाई या अन्य रिश्तेदार को उत्तराधिकारी बनाया जाता। भारतीय समाज चिंतकों ने इस प्रक्रिया को व्यवस्थित और धर्मनिष्ठ बनाने के लिए मर्यादित आचरण के भी नियम निर्धारित किए थे। समाज में उत्तराधिकार को लेकर जो व्यवस्थाएँ बनाई गईं, वे प्राचीन काल से लेकर अब तक सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं को प्रभावित करती रही हैं। भारतीय समाज और राजनीति में वंशवाद के सिद्धांत का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है, खासकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां परिवारों और राजनैतिक दलों में उत्तराधिकार के नियम चलते हैं। इस प्रकार, उत्तराधिकार के सिद्धांतों का समाज और राज्य के संचालन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, और ये सिद्धांत समय के साथ परिवर्तित होते हुए भी अपने मूल उद्देश्य को बनाए रखते हैं।
Keywords
राजनीतिक संतुलन, भारतीय समाज चिंतन, उत्तराधिकार, राजतंत्रात्मक